चिड़ियाँ पर शायरी | Shayari on Birds
मैं पंछी हूँ मदमस्त हवाओ का,
क्यों सजा मिल रही है दूसरो के खताओं का.
घमंड में पंखों को फैलाकर
जो पंक्षी बादलों के पार जाता है,
आसमान में घर नहीं बनते
थक कर मगरूर वापस लौट आता है.
डरकर हवाओं से यह क्या कर लिया,
पंक्षियों ने पिजरें को अपना घर बना लिया।
पिंजरा छोड़ जब चला जाता है परिंदा,
फिर कितने नई राहो को चुनता है परिंदा।
Hindi Shayari on Flying Birds
जो हौसला रखते है आकाश को छूने की,
उन्हें परवाह नहीं होती है गिर जाने की.
घोसलें में बैठा पंछी नादान है,
उसे नहीं पता क्या उड़ान है,
जब वो पंख फैलाएगा तभी तो जानेगा
क्या उसकी असली पहचान है.
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