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घर की यादें शायरी हिंदी | Ghar Ki Yaadein Shayari Hindi

घर की यादें शायरी हिंदी

घर में कमरे हुआ करते थे तब,
कमरों में हो गया है घर अब.


गाँव की गलियाँ मिलती है किसी अंजान की तरह,
शहर से मैं अपने घर जाता हूँ एक मेहमान की तरह.


इन रिश्तों की बारीकियों को अगर समझा जाएँ,
तो कैसे किसी मकान को माँ बिन घर समझा जाएँ.


घर के बाह्रर दुनियादारी है,
घर के भीतर दुनिया सारी है.


Ghar Ki Yaad Shayari in Urdu

कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
किसी की आँख में रहकर संवर गए होते
बशीर बद्र


दर-ब-दर ठोकरें खाईं तो ये मालूम हुआ
घर किसे कहते हैं क्या चीज़ है बे-घर होना
सलीम अहमद


पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं
निदा फ़ाज़ली


किस से पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ कई बरसों से
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा
निदा फ़ाज़ली


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